कर्म पहले या कर्म की वजह/ कारण पहले?!?
आम तौर हम कहते हैं कि किसी भी कर्म का कारण पहले आता है, कार्य बाद में आता है। क्या यह सही है?
सूक्ष्म दृष्टि से देखने पर कारण और कार्य साथ-साथ होते जान पड़ते हैं। सब एक साथ घटते हैं। जैसे हम अगर कुछ बुरा कर रहे हो, तो बुरा होकर ही तो बुरा कर रहे होते हैं। और बुरा होना अपना दण्ड स्वयं होता है, तो सज़ा ये क्या कम है– खुद की नजर में घटिया होना। सूक्ष्म दृष्टि में हमें तत्काल सज़ा मिलती है, इंतज़ार नहीं करना पड़ता कि आगे कभी सज़ा मिलेगी।
कर्म और कर्मफल का जो सिद्धांत है वह हमने ठीक से समझा नहीं है। हम स्थूल दृष्टि वाले लोग हैं, हम हमेशा स्थूल घटनाओं की ही परवाह करते रहते हैं। हमें लगता है कि अभी अगर मैं कुछ बुरा करता हूँ, तो मुझे उसका दुष्परिणाम आगे कभी मिलेगा। परंतु सूक्ष्म रूप से आपको परिणाम मिल चुका है, हमको दिखाई नहीं दे रहा क्योंकि अभी आँखें नहीं हैं सूक्ष्म को देखने की।
एक उदाहरण लेते हैं:– मान लो मैं बहुत लोभी वृत्ति का आदमी हूं, और पैसे के लिए कुछ भी कर सकता हूं। अब लोभ के लिए मै झूठ, कपट का सहारा लेता हूं और गलत काम करता हूं, मन को बैचनी और चोरी का रोग तत्काल लग गया। तुम्हें मिल गया परिणाम। लेकिन वह परिणाम खुले रूप में तुम्हारे सामने आएगा कुछ महीनों बाद या हो सकता है कुछ सालों बाद– अवसाद के रुप में, एंक्जेटी के रुप में, हाइपरटेंशन के रुप में। तो तुमको ऐसा लगेगा जैसे मैंने तीन साल पहले गलत काम किया था और तीन साल बाद मुझे उसका परिणाम मिला। नहीं, तीन साल बाद परिणाम सामने आया, परिणाम मिल तो उसी समय गया था जिस समय तुमने वह किया था।
कर्मफल ऐसे ही काम करता है। जब हम कुछ गलत कर रहे होते हो तभी हमको उसका परिणाम मिल जाता है।
कहने वालों, समझने वालों ने तो और अधिक आगे जाकर कहा है—जब तुम कुछ गलत कर रहे होते हो, उसका परिणाम तुम्हें उसके पहले ही मिल चुका होता है। यह बात बहुत लोगों के समझ नहीं आती है। कर्म से पहले ही हमें कर्म का परिणाम मिल चुका होता है; क्योंकि बुरा काम करने के लिए पहले हमें बुरा होना पड़ता है, और बुरा होना अपनी सज़ा आप है।
गलत काम कैसे कर लोगे? उसके लिए पहले तुम्हारे मन को गलत होना पड़ेगा न? मन को गलत कर लिया तुमने, तो तुमने दे ली न अपने-आप को सज़ा? और अब तुम्हें क्या सज़ा चाहिए, तुम अब अंदर-ही-अंदर तड़पोगे।
मन हमेशा कष्ट/ तड़प में मिलता ही इसीलिए है। और मन का सबसे बड़ा कष्ट यही है कि मन बुरा हो गया, मन अशांत हो गया। कोई भी बुरा काम अशांत होकर ही होगा, कोई भी बुरा काम करने के लिए पहले खुद को ही बुरा बनना पड़ेगा। तो बुरा काम करने से पहले ही हमें उसके कुपरिणाम, दुष्परिणाम मिल जाते हैं।
ये कर्मफल का सिद्धांत है और यह तो बहुत ज़बरदस्त है, लेकिन हम उसे समझते नहीं हैं।
हम कहते हैं कि "मैं आज बुरा काम कर रहा हूँ तो मुझे कल उसकी सज़ा मिलेगी।" आज चलो बुरा काम कर लेते हैं। इसकी सज़ा अगर एक साल बाद मिलनी है तो बीच में तीन सौ चौंसठ दिन तक पुण्य कर लेंगे, तो बात बराबर हो जाएगी। ऐसे तर्क देकर हम दुनिया में बुराई कायम रखते है– खुद से धोखा। आदमी ने तो तरकीब यहा तक निकाल ली है कि 'अगले जन्म में परिणाम मिलेगा', ताकि बुराई करने से रुकना न पड़े।
कृपालु गुरु जी ने कर्मफल की बात इसलिए बताई है ताकि हम अभी सचेत हो। हमे पता हो कि अभी, तत्काल ही हमें हमारी करनी का फल मिल गया। आगे नहीं मिलेगा, मिल गया! अब सहमोगे, अब तुम कुछ बुरा नहीं कर सकते।
अंत में महत्पूर्ण बात "सही कर्म अपने आप में ही कर्मफल है।" सही कर्म हमेशा आनंद से निकलता है, सत्य की कृपा से निकलता है।