मुक्ति स्वभाव से निकलती है। मेरा स्वभाव आनंद है या प्रेम। स्वभाव-गत आचरण ही शांति देता है। कर्म में स्वभाव-गत आचरण आना चाहिए। वरना द्वंद में फंश जाते हैं। मेरा आचरण केवल मेरी दिक्कत नहीं है, बल्कि इससे सारा संसार प्रभावित होता है। आपके द्वारा किए गए कर्म, बोले गए वचन वापस नहीं होने वाले। गलतियाँ सब से हो जाती हैं, गलतियों को मानना और उसको सुधारना आपका सबसे शक्तिशाली गुण है। ये शिष्यत्व का सबसे सुंदर गुण है।
जिसको किसी भी क्षेत्र में उन्नती करती है उसमें इस गुण का होना और इसका सर्वधन करना जरूरी है। जीवन एक निरंतर चलने वाली क्रिया है। इसमें अनुभव आते ही रहेंगे, पर किसी एक अनुभव की तलाश या लालसा, आपको बंधन में रखेगी। एक अनुभव से कुछ सिख कर के आगे बढ़ते रहो, अपने उच्चतम अभिव्यक्ति की ओर । अपने उच्चतम स्तर तक जाने की कोशिश का मार्ग ही अध्यात्म है।