शरीर को ही सत्य मान लिया है, ऐसे लोगों के बीच ही हम जन्म लेते हैं और फिर इसके अधीन हो जाते हैं, शरीर को सुख देने में ही लग जाते हैं।
पर क्या हम केवल शरीर है, नहीं; हम एक चेतना(चैतन्य) हैं और इस शरीर के साथ जुड़े हैं।
यही कारण है कि हम शरीर की गतिविधियों, इसके इंद्रिय वृत्ति को बन्द नहीं कर सकते हैं। जिसने भी इसको नकारा है –वो धोखे में है। कभी कभी ये शांत होता है(जान पड़ता है) तो ये ना समझे कि इसको जीत लिया। ये कभी भी आपको गिरा सकता है, कभी भी किसी विकार को प्रकट कर सकता है, जैसे –क्रोध, ईर्ष्या, आलस, कामना।
वास्तव में हम चैतन्य हैं, हमे चेतना को विकसित करना है। इसके लिए ही गुरु, ज्ञान, ज्ञान मार्ग है।
पर बिना शरीर और चेतना को समझे कोई मार्ग पर नहीं बढ़ सकता। यहां कोई चमत्कार नहीं होने वाला है। कोई मनजीत नहीं है, कोई कर्मजीत नहीं है। केवल अज्ञान को दूर कर सकते हैं और चेतना को विकसित किया जा सकता है। यही अध्यात्म का मक़सद है, कुल परिणाम है।
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