रविवार, 13 फ़रवरी 2022

साधक से साक्षी की ओर

     साधक को ही क्षेत्रज्ञ कहा है। क्षेत्रज्ञ वो है जो क्षेत्र का ज्ञाता है।

     आध्यात्म में कौन से क्षेत्र की बात हो रही है? यह जो क्षेत्र है हमारे "अनुभव" का ही क्षेत्र है। जो भी अनुभव किया जा रहा है, जो भी इंद्रियो की पकड़ में है वो इस क्षेत्र में आता है।

      जो कुछ भी देख, सुन, स्पर्श (रंग, रूप, रस, गंध, शब्द )  आदि द्वारा अंदर प्रवेश कर सकता है, फिर वह अतःकरण से कुछ क्रिया कर अनुभव को प्रकट करता है। बात ये भी है कि अगर अंत:करण (मन) कोई क्रिया न करे तो फिर कोई अनुभव भी नहीं होगा।

     अब जो कुछ है जिसका मन से संग हो सकता है वो सब अनुभव क्षेत्र में आता है। जैसे- वस्तुएँ, भावनाएं, विचार (जिसका भी हो) सुख, दुख आदि-आदि।

अब इस ज्ञान को पाने की दो लोग कोशिश करते हैं: 

     एक जो इस ज्ञान से लाभ पाना चाहता है - अनुभव के तल पर ही, यानि एक संसारी जिसकी भोगने में ही रूचि है। वो इस ज्ञात के माध्यम नए-नए रास्ते खोजेगा अनुभवों को भोगने के। 

      दूसरा वो जो इस ज्ञान से लाभ पाना चाहता है, इससे मुक्त होने के लिए । तो जो इस क्षेत्र को जानता है, मुक्ति के लिए उसको बोल सकते हैं- क्षेत्रज्ञ। यह जो स्थिती है– एक साधक की स्थिती है। साधक को मुक्ति चाहिए | साधक को अनुभवों से विरक्ति हो गई है, अधिकांश बार/समय अनुभवों से प्राप्त दुख के कारण और वह मुक्ति कि तलाश में है। 

     जब साधक बिलकुल ही विरक्त हो जाता है–अनुभवो के प्रति, तब वह साक्षी है। 



     साधक को बहुत जरूरत है, अपने अनुभवों के प्रति सजग होने की। साधक को अपने अनुभवों (संसार) को बिलकुल साफ-साफ देखना होगा, तभी वह उनसे अपनी मुक्ति की ओर जा सकता है। जब साधक भली भांति से संसार को जान लेता है, तभी वह उसके सभी प्रपंचों से बच सकता है।

     अंत में जब अनुभवों से मुक्ति की चाह भी गिर जाती है, तो, "मुक्ति" है। मुक्त स्थिती है। 

🌼अनुभवों के प्रति अनासक्ति – साक्षी है। 🌼


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