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बुधवार, 23 नवंबर 2022

स्वभाव को देखे

दुख आपके बंधन का पता बता देता है।
आपके जीवन का सच सामने ला देता है। दुख बहुत काम कि चीज है, आज | हम आज एक ऐसे समाज में रहते हैं, जिसका दुख और सुख का पैमाना तुलनात्मक है, चीजों पर आधारित है। इसका हम सबके ऊपर बहुत प्रभाव है। ये ही समाज नए मानव मन को नियंत्रित करता है | अगर आप ईमानदारी से देखेंगे तो आपको पता चलता है कि आपके अपने विचार, इच्छाएँ, कर्म कितने आपके हैं?

आपका दुख बहुत बार केवल एक छोटी सी बात से भी खत्म हो  सकता है। आप अपने को समाज से थोड़ा अलग कर के देख लो। आपको पता चल जाता है कि क्या करने लायक, क्या सोचने लायक है। आपकी बहुत सारी दौड़ व्यर्थ जान पड़ जाएगी, तो फिर सार्थक गंतव्य की ओर चलना शुरू हो जाएगा।
 
दुख से सुख की ओर नहीं भागना है। दुख और सुख की व्यर्थ दौड़ को देखना है और अपने स्वभाव की ओर बढ़ना है। स्वभाव से जीने में आनंद है। स्वभाव ही मुक्ति है।  

कृप्या करें स्वयं पर, अपने लिए सदा ईमानदार रहे। ये ईमानदारी आपको अधिक स्पष्टता और शांती से आपके जीवन को भरता है।

शनिवार, 30 अक्टूबर 2021

कहा बंधन कहा मुक्ति?

ज्ञान केवल अज्ञान का अंत है।
अध्यात्म में अज्ञान केवल परिवर्तन से आसक्ति (बंधन) है।
अध्यात्म मे अज्ञान का अंत, आत्मबोध है। 
आत्मबोध का उदय, चेतना का उदय है।
ज्ञान द्वारा अज्ञान को दूर करने वाली वृत्ति को चेतना कहते हैं। 
चेतना का उपहार है– आत्मज्ञान की स्थिरता।

आप कितने होश/साक्षी में जीवन जीते हैं इसी से पता चलता है कि आप मुक्त हैं या बंधन में। बंधन में ही दुख है। 

संसार(व्यक्ति, समय, स्थान) में कुछ बदलने की कोशिश है – बंधन है।
कुछ पाने, खोने को है – बंधन है।
कर्म से/में भय है– बंधन है।
हर पल इच्छा आती, जाती रहती है– बंधन है।

नर्क की आदत

वृत्ति को और छोटा करते हैं - आदत से शुरू करते हैं। व्यक्ति अधिकांशत अपनी आदत का गुलाम होता है अपनी कल्पना में हम खुद को आज़ाद कहते हैं, पर क...