खेल है प्रकृति का, गुण दिए हैं प्रकृति ने। तुम नाहक ही अपने पर ले रहो हो । तुम तो ताश के पत्तों के समान हो, जो हो वो हो खेल में, खेल ही बताता है किस कि कितनी किमत है। इसमें खिलाड़ी का कोई खास योगदान है नहीं।
सत्य ऐसे है जैसे पत्तों का कैस (case)।
खेल खत्म, पत्ते वापस अपने कैस में । सत्य न तो खेल में शामिल है, न ही खेल के खत्म होने में शामिल है। सत्य है तो खेल है। पर सत्य खेल है नहीं। सत्य को जान जानें से खेल के सारे गुण जाने जाते हैं।
प्रकृति और सत्य के बीच एक बोध का पूल है। मनुष्य की बैचेनी उसका इस पूल पर एक छोर से दूसरे दोर भागने का परिणाम है। जब हम प्रकृति का अतिक्रमण करके सत्य की ओर बढ़ते हैं, सत्य के प्रेम में पक्ष कर उसके पास जाते रहते हैं। जितना सत्य के नजदीक हो उतने ही आनंद में हो । आपका लक्ष्य आनंद है, तो सत्य का बोध जरूरी है।
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