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सोमवार, 6 सितंबर 2021

प्रेम गली अति साँकरी जा में दो ना समाए - भक्तिमार्ग

      भक्तिमार्ग से अद्वैत की यात्रा सबसे छोटी है। भक्तिमार्ग सर्मपण का मार्ग है। यहाँ भक्त अपने आप को मिटाकर अपने से उच्च गुणों /अवस्था वाले गुरु, ईश्वररूप (मान्य) को पूर्ण  समर्पण करता है। यहाँ खुद को मिटाने का संबंध कुछ भी घटाने से नहीं है। जैसे आपको इस संसार में भी यदि क्षणिक रूप से किसी व्यक्ति से प्रेम होता है, तो उस क्षण के लिए आपका कोई और अनुभव नही होता है । आपको केवल प्रेमी / प्रमिका ही सुनाई, दिखाई और महसूस होगा | उसके गुण-दोष सारे ही समाप्त हो जाते हैं । 

     ऐसी ही स्थिती एक भक्त कि है– वह खो जाता है और स्वयं भगवान हो जाता है। परंतु आज– कल ऐसा भक्त का मिलना चमत्कार ही होगा। इस पूरी पृथ्वी पर थायद ही ऐसा कोई मिले। इस काल में जहाँ मनुष्य शंकाओं, भ्रम और अंहकार की पाठशाला में ही जन्म पाता है। वहाँ समर्पण जैसे गुण का उदय चमत्कार ही होगा। इस मार्ग में भी अधिक भटकने और धीमे विकास की बाधाएं है। भक्त की समर्पणता से उसके सारे शुभ– दोष (चित्तवृत्ति) मिट जाएगे। फिर उसकी एकता होगी स्वयं से । 

   जब ऐसी स्थिति प्राप्त होती है, तब वह विरला भक्त कह पाता है - प्रेम गती अति साँकरी जा में दो ना समाए।

      भक्तिमार्ग से ज्ञानमार्ग में थोड़ा प्रयास है, ज्ञानर्माग में हम बोध के लिए साधना करते, ज्ञान प्राप्त करते हैं, अपने शुभों- दोषों (चित्त की परतों) को शांत करते हैं। ज्ञान प्राप्त करने के लिए श्रवण मनन निधिध्यासन को अपनाते हैं। आत्मबोध प्राप्त करते हैं । आत्मज्ञान होने पर किसी ज्ञानी को भी पता चलता है कि – संसार एक महास्वप्न है और केवल दृष्टा ही सदा है, निरंतर है। 

       इस ज्ञान के साथ अब ज्ञानी में शाश्वत प्रेम और समर्पणता आती है और अब अद्वैत अवस्था की प्राप्ती होती है। जहाँ इस काल में "प्रेम" सहज नहीं है, हमें पहले ज्ञानमार्ग से बोध की प्राप्ती के लिए जाना चाहिए। क्योंकि इन सभी मार्गो की अंतिम मंजील एक ही है– स्वयं की जागृति, परमानंद अवस्था।

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वृत्ति को और छोटा करते हैं - आदत से शुरू करते हैं। व्यक्ति अधिकांशत अपनी आदत का गुलाम होता है अपनी कल्पना में हम खुद को आज़ाद कहते हैं, पर क...