आपकी गति/अवस्था/स्थिती के पीछे कारण क्या है ? जानने की कोई जरूरत नहीं है, केवल आपके होने कि स्थिती को हम/आप जानते हैं - बस ऐसा ही है। किसी को किसी भी कारण से समझ नहीं आता या आया हो तो भी बात वहीं है कि समझा नहीं गया है। तुम क्यों चुके - वो तुम जानो।
सब कारण झूठे हैं।
कारण के चलते जो कर्म किए जाते हैं, उनसे कैसे भी अलग नहीं जो कारण चलते नहीं किए, दोनों स्थिती में कारण का बंधन है। कर्म को करने, न करने से कुछ भी नहीं बदलता, उसको करने वाला भी तो गड़बड़ हो सकता है? और करने वाला जो है उसको बदलना कोई नहीं चाहता।
अध्यात्म है – पूर्ण, आधारहीन और निजी आश्वासन पर पहुंचना। कल्पनाओं में खोया मन अगर अध्यात्म से जुड़ता है तो और अधिक भ्रम में पड़ सकता है। "गुरु" तो आपकी स्थिती बता सकता है- बाकी तुम जानों।
आपकी पहले की, पुरानी गति/स्थिती के न रहने की अवस्था है "ब्रह्म" । यहां हम हर दशा के लिए एक नए शब्द का उपयोग कर सकते हैं। जैसी आपकी बिमारी वैसा ही नाम उपचार का है:
राग =वितराग
सिमीत =असीम
मरण= अमर
यहां सब अकारण है। अकारण ही मूल है। अकारण की कृपा है। सब एक है, सब सत्य है। दृष्य - दृष्टा एक है | मनन करें।
।।।। समर्पण ।।।।
समर्पण या तो सहज ही होता है या फिर होता ही नहीं।
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ज्ञान आनंद वार्ता
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