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शनिवार, 11 सितंबर 2021

आनंद सूत्र

मनुष्य के दुःख मूल क्या है। 
             विचार –विचार सतत चलने वाली क्रिया है । 

यह आपके दुःख कारण कैसे है?
            विचार जब तक हैं, वो गतिमान ही रहेंगे – यही इसका गुण है। अब विचार कैसे भी प्रकट हो सकते हैं- अच्छे, बुरे, सच्चे –झूठे। अब अगर आपके विचार के अनुसार आपका कार्य नहीं होता तो दुःख या कार्य के अनुसार आपके विचारो का गठन नहीं होता तो दुःख। 

एक मनुष्य की सबसे बड़ी इच्छा क्या है - चाहे वो कोई भी हो ?
           इन विचारों से मुक्ति या इन विचारों पर जय।

क्या यह संभव है ?
            संभव है । 

सूत्र क्या है ?  सत्य का सँग !!
           दुखी व्यक्ति का सत्संग तक पहुंचना भी कठिन जान पड़ता है। क्योंकि माया का परदा पड़ा है –आसा का। एक आस बांध रहती है कि जहां आज दुःख है वहा कल सूख होगा। यह मृगजल जैसा है दिखाई देता है ; कि पानी है, परंतु जब वहां जाओगे तो वहां नहीं है, किसी और जगह है। ऐसी ही स्थिती मानव जाति की है।
ऐसे मृगजल की भ्रांति से ग्रस्त व्यक्ति को केवल यह बोध कि यह मृगजल है सत्य नहीं– बचा सकता है। 

यह बोध कैसे हो ?, 
          बोध प्राप्त व्यक्ति ही ऐसा बता सकते हैं, उनको हम गुरु कहते हैं। गुरु आपको बोध कराते है - सत्य का और आगे बढ़ जाते हैं। 

बोध की विधि क्या है ? 
 १. श्रवण : सुनना /देखना
              जिसकी बुद्धि प्रखर है, प्रज्ञा तेज है, उनको केवल सुनना/ देखना ही प्रयाप्त है। ठीक से सुनने/देखने पर ही बोध हो जाएगा। जैसे मछुआरों को लहर देख कर ही तूफान आएगा या नहीं पता चल जाता है। जैसे अग्नि को देखते ही उष्णता का पता चल जाता है।

२.मनन:
           अब अगर तीव्र प्रज्ञा नहीं है तो फिर मनन कुंजी है| मनन भी विचारों के समान ही एक स्तत क्रिया है। पर यह एक ही दिशा में गतिमान है ।
गुरु से प्राप्त ज्ञान को श्रवण करना है, फिर ज्ञान को अनुभव तक पकाने के लिए तर्क और विवेक की अग्नि पर चढ़ाना है।

३. निधिध्यासन:
             यह एक मास्टर चाबी है। इससे काम बनने की संभावना बढ़ जाती है। यहाँ पर हम गुरु से सुने ज्ञान पर मनन कर उपलब्ध हुए अनुभव को उपयोग करते हैं। यह, अंतिम विधि है। जब ज्ञान से उपजे अनुभव को आप प्रयोग करते | यही सतत समाधी में है। 

      सारी क्रिया ऐसे है, जैसे, पहली बार खाना बनाने की कोशिश: 
१. सुना/ देखा– कैसे-कैसे बनाते हैं और आ गया। 
२. कोशिश (मनन) –खुद तैयारी की और बनाने का प्रयास किया जब तक सही से नहीं बना।
३. आनंद - एक बार सिख लिया कैसे बनाते हैं फिर सदा के लिए सिख लिया | अब बनाना है और खाना है –आनंद है।

           एक बार पुन: अपने प्रश्न को देखते है विचारों का भार है, दुख है । सुख - आंनद कैसे मिले
उत्तर है– असत्य का नाश कर दें | 
कैसे ?
सत्य के प्रकाश से।
सनातन सत्य: जो परिवर्तन करता है वह असत्य है। इसका श्रवण हुआ, ज्ञान प्राप्त हुआ।

मनन: परिवर्तन करने वाली सभी वस्तुओं, व्यक्तियों, भावनाओ को तर्क और विवेक से जांचना और परिवर्तनीय में छिपे अपरिवर्तनीय के बोध को जानना।

निधिध्यासन: सतत इस बोध का उपयोग करना। चेतना में जीना है। यही साक्षी बोध है। साक्षी की अवस्था में आपको विचारों का भार नहीं है। आप विचारों के दृष्टा हैं। यही परमानंद अवस्था है।

बालवत स्वभाव को कोन समझेगा ।
जो खुद खो गया उसको कोन खोजेगा।।
मोन से टकरा रहा है आनंद, पर जिसे 
कहा ना जा सके उसे कोन कैसे कहेगा?
मन मयूर की प्यास बुझा दे।
हे गुरु मोहे परमआनंद पिला दे।।

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