वृत्ति को और छोटा करते हैं - आदत से शुरू करते हैं। व्यक्ति अधिकांशत अपनी आदत का गुलाम होता है अपनी कल्पना में हम खुद को आज़ाद कहते हैं, पर केवल कहने भर को | आपका असली चेहरा आपके सामने कभी भी आ सकता है। अगर आपको लगता है कि आप कम कामी, कोधी हैं, तो ये हो सकता है कि ऐसा परिस्थिति वश हो और विपरीत परिस्थिति में, जब चारों ओर से तुम पर प्रहार होता है; आपका चेहरा कैसे हो जाता है, आप देख लो। यही आपकी मूल आदत है, वृत्ति है।
यहाँ बड़ी समस्या है, वृत्ति कोई हल्की चीज़ है, नहीं, तुम इसको हल्के में लेने की भूल कर रहो हो। और जब तुमको लगता तब है कि तुम मन की सवारी कर रहे हो तब भी ऐसा केवल तुमको लगता है। असल में तो मन ही तुम पर सवार रहता है। मन पर जीत हासिल करना बड़ा ही दुष्कर काम है। स्वयं के प्रति ईमानदारी चाहिए। ईमानदारी के प्रति भी निष्ठा रखनी चाहिए, तभी स्वयं का भान होगा। अपनी सभी इच्छाओं, वासनाओं का पता चलेगा। पता चलेगा कौन सा विचार, कौन सी क्रिया कहाँ से निकल रही है। जितना आप इसके स्रोत के निकट जाते जाएँगें उतना ये आपसे होगें दूर होते जाएँगे। ये सब खत्म नहीं होगें पर अब इनका प्रभाव उस प्रकार से आपको नहीं हिला जाएगा, जैसे पहले हिला जाता था ।
यहीं आपकी मुक्ती का मार्ग है। यहाँ से आपका व्यर्थ का बोझ उतरने लगेगा, आप हल्के होने लगोगे। हल्के होते कि स्थिती से आपको आपके मार्ग का पता चलेगा, पता चलेगा कि किस ओर जाना है और उसी के हिसाब से अब आप अपने सभी कर्म - धर्म का विधारण करोगे।
अब आप एक व्यक्ति से आगे निकल सकने की ओर अग्रसर हैं। यही तो आपका हमेशा से लक्ष्य था - भार-मुक्त - आनंदमय जीवन !