मुक्ति की चाह ही मनुष्य की सबसे बड़ी चाह है। और मुक्ति की राह सबके लिए अलग है। सबकी परिस्थिती अलग - अलग होती है। सबके अलग - अलग बंधन हैं।
सबका अंतमन 'सत्य' को जानता है और नहीं भी। क्योंकि जहाँ भी बात सत्य की चल रही हो आपका मन वहाँ राजी हो जाता है। सत्य मन से परे है पर उसका अहसास मन को होता है।
यही हमारी सबसे विकट समस्या है - कि कुछ है तो सही पर मन उसको पा नहीं सकता।
करें अब क्या ? चाहत तो है 'सत्य' की पर मिलता वो दिखाई नहीं देता। अब या तो हम सत्य है ही नहीं मान लें और जैसे जी रहे हैं, वैसे ही जीते मान रहें। जैसे जी रहें हैं वैसे तो हम जीना चाहते नहीं।
तो फिर 'सत्य' के लिए प्रयास करते रहे।
सत्य के लिए प्रयास कैसे करें, जब बो से मन बाहर की बात है? ‘असत्य’ से दूर रह कर ही सत्य के समीप रह सकते हैं। असत्य हम से दूरी, असत्य को हराने की कोशिश ही जीवन में आनंद का संचार करती है।
असत्य क्या है? ये ही जानना आपका ध्येय है। मन को मुक्ति चाहिए, आनंद चाहिए, क्योंकि मुक्ति और आनंद आपका स्वभाव है। जो भी गुण, विचार, व्यक्ति आपको मुक्ति से दूर करें वो है असत्य, उसको हटाने पर आपको मुक्ति की समीपता का पता चलता है।
अपने लिए ईमानदार बने, अपने हर काम को जाँच लें - अपने बंधनों को जान लें, तभी आप बंधनों को काट सकते हैं। इसके लिए आपको किसी गुरु की आवश्यकता नहीं है। परंतु एक गुरु के सानिध्य में बधनों का पता जल्दी लग सकता है, जल्दी मुक्ति की संभावना होती है।