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मंगलवार, 22 नवंबर 2022

आपका प्रयास और मुक्ति

 मुक्ति की चाह ही मनुष्य की सबसे बड़ी चाह है। और मुक्ति की राह सबके लिए अलग है। सबकी परिस्थिती अलग - अलग होती है। सबके अलग - अलग बंधन हैं।

सबका अंतमन 'सत्य' को जानता है और नहीं भी। क्योंकि जहाँ भी बात सत्य की चल रही हो आपका मन वहाँ राजी हो जाता है। सत्य मन से परे है पर उसका अहसास मन को होता है।

 यही हमारी सबसे विकट समस्या है - कि कुछ है तो सही पर मन उसको पा नहीं सकता।

करें अब क्या ? चाहत तो है 'सत्य' की पर मिलता वो दिखाई नहीं देता। अब या तो हम सत्य है ही नहीं मान लें और जैसे जी रहे हैं, वैसे ही जीते मान रहें। जैसे जी रहें हैं वैसे तो हम जीना चाहते नहीं।

तो फिर 'सत्य' के लिए प्रयास करते रहे।

सत्य के लिए प्रयास कैसे करें, जब बो से मन बाहर की बात है? ‘असत्य’ से दूर रह कर ही सत्य के समीप रह सकते हैं। असत्य हम से दूरी, असत्य को हराने की कोशिश ही जीवन में आनंद का संचार करती है।

असत्य क्या है? ये ही जानना आपका ध्येय है। मन को मुक्ति चाहिए, आनंद चाहिए, क्योंकि मुक्ति और आनंद आपका स्वभाव है। जो भी गुण, विचार, व्यक्ति आपको मुक्ति से दूर करें वो है असत्य,  उसको हटाने पर आपको मुक्ति की समीपता का पता चलता है।

अपने लिए ईमानदार बने, अपने हर काम को जाँच लें - अपने बंधनों को जान लें, तभी आप बंधनों को काट सकते हैं। इसके लिए आपको किसी गुरु की आवश्यकता नहीं है। परंतु एक गुरु के सानिध्य में बधनों का पता जल्दी लग सकता है, जल्दी मुक्ति की संभावना होती है।


रविवार, 20 नवंबर 2022

सत्य ही ध्येय

 कितना मुर्ख था मैं जिसे समझा सच

वो दुनिया तो जीवन का धोखा है

डर, अंधेरे, रौशनी को तडपाती है

रौशनी मिलती नहीं 

गुरु की तड़प, गुरु मिला नहीं

सत्य की तड़प से गुरु मिला

गुरू तो गुड़ की तरह है

जीवन की कड़वाहट हर लेता है 

शहद से जीवन को प्रकट कर देता है।

 यहाँ हम मुफ्त में ठगे जा रहे हैं 

जो डरा नही सकते उनसे डरे जा रहे हैं।

 जब तक मिलता नहीं सुकुन तड़प जारी है 

= जब मिल जाए तो फिर बाँट की बारी है।


🙏

रविवार, 26 सितंबर 2021

मुक्ति

        क्या है ये "मुक्ति" जो सभी मनुष्यों की प्रथम चाह है! मुक्ति की अगर चाह भी है तो फिर, ये मुक्ति कैसे मिलेगी और किस से मिलेगी ?

        पहली बात जो पक्की है, ये है कि मुक्ति जीवन से तो नहीं है। मुक्ति मिलनी तो जीवन में ही चाहिए। मिलती भी है,  तो जीवन में ही मिलती है, उससे आगे –पीछे मिलने का कोई उपाय नहीं है। तो सबसे पहले मुक्ति का प्रश्न छोड़ दो, छोड़ दो की किस दिशा में आगे जाना है, कहा मिलेगी? प्रश्न करें की बंधन कहा है, क्या है, किस से हैं? आप अपने बंधनों(दुखों) को देखना और पहचाना शुरू करो। आप का बंधन/ दुख क्या है बस उसको खोजना है, पहचानना है। अब आपके जीवन में प्रथम बार चमत्कार घटित होगा, आपके बंधन/ दुःख हल्के हो जाएंगें। 
            
                  है न आश्चर्य!!!

          जैसे ही दुख को देख लिया, जान लिया वैसे ही उसका कारण भी पता चल जाता है। अब कारण जानने के पश्चात दुख और बंधनों का निवारण किया जा सकता है। ९९% मामलों में ये सब बस जान लेने से ही मिट जाते हैं। हम जान जाते हैं, कि इन सब दुखों का कारण हम स्वयं हैं– हम ही अंधेरे में रस्सी को सांप मान कर कंप रहे हैं, जैसे ही ये देख लिया कि केवल रस्सी ही है तो फिर कैसा भय ? आप भय-मुक्त हुए।

         आप का अज्ञान/ अंधकार ही आपका बंधन है। आपके चित्त का अंधकार प्रेम ही बंधन है। आपका जन्म अंधकार में भले ही हुआ हो परंतु, जीवन में प्रकाश पाना ही आपका लक्ष्य है। सभी के जीवन का यही उद्देश्य है कि प्रकाश को पाया जाए, प्रकाश की ओर बढ़ा जाए। अज्ञान से दूरी ही ज्ञान है। अज्ञान से दूरी ही आपकी मुुक्ती है। तो फिर उठो, जागो और प्रेम से लगे रहो ज्ञान प्राप्त 
करने की ओर। याद रखिए:
        संसार(जन्म - मृत्यु) तो बस खेल है, बस खेलो,
          जीत हार की बात मत करो, बस खेलो, 
             जो बस खेलते आया है, वो बस खेलता है। 
                 खेल ही आनंद है, उत्सव है।

 आप अपने जीवन के मालिक बनो, 
 निर्भरता छोड़ो, बड़े लक्ष्य की ओर ध्यान दो।
 स्वयं का ज्ञान प्राप्त करना सर्वश्रेष्ठ लक्ष्य है।
 स्वयं का ज्ञान होना ही मुक्ती है।
 स्वयं का ज्ञान होना ही कर्म मुक्ति है। 
 स्वयं का ज्ञान होता ही स्वयं से मुक्ति है।



नर्क की आदत

वृत्ति को और छोटा करते हैं - आदत से शुरू करते हैं। व्यक्ति अधिकांशत अपनी आदत का गुलाम होता है अपनी कल्पना में हम खुद को आज़ाद कहते हैं, पर क...