क्या है ये "मुक्ति" जो सभी मनुष्यों की प्रथम चाह है! मुक्ति की अगर चाह भी है तो फिर, ये मुक्ति कैसे मिलेगी और किस से मिलेगी ?
पहली बात जो पक्की है, ये है कि मुक्ति जीवन से तो नहीं है। मुक्ति मिलनी तो जीवन में ही चाहिए। मिलती भी है, तो जीवन में ही मिलती है, उससे आगे –पीछे मिलने का कोई उपाय नहीं है। तो सबसे पहले मुक्ति का प्रश्न छोड़ दो, छोड़ दो की किस दिशा में आगे जाना है, कहा मिलेगी? प्रश्न करें की बंधन कहा है, क्या है, किस से हैं? आप अपने बंधनों(दुखों) को देखना और पहचाना शुरू करो। आप का बंधन/ दुख क्या है बस उसको खोजना है, पहचानना है। अब आपके जीवन में प्रथम बार चमत्कार घटित होगा, आपके बंधन/ दुःख हल्के हो जाएंगें।
है न आश्चर्य!!!
जैसे ही दुख को देख लिया, जान लिया वैसे ही उसका कारण भी पता चल जाता है। अब कारण जानने के पश्चात दुख और बंधनों का निवारण किया जा सकता है। ९९% मामलों में ये सब बस जान लेने से ही मिट जाते हैं। हम जान जाते हैं, कि इन सब दुखों का कारण हम स्वयं हैं– हम ही अंधेरे में रस्सी को सांप मान कर कंप रहे हैं, जैसे ही ये देख लिया कि केवल रस्सी ही है तो फिर कैसा भय ? आप भय-मुक्त हुए।
आप का अज्ञान/ अंधकार ही आपका बंधन है। आपके चित्त का अंधकार प्रेम ही बंधन है। आपका जन्म अंधकार में भले ही हुआ हो परंतु, जीवन में प्रकाश पाना ही आपका लक्ष्य है। सभी के जीवन का यही उद्देश्य है कि प्रकाश को पाया जाए, प्रकाश की ओर बढ़ा जाए। अज्ञान से दूरी ही ज्ञान है। अज्ञान से दूरी ही आपकी मुुक्ती है। तो फिर उठो, जागो और प्रेम से लगे रहो ज्ञान प्राप्त
करने की ओर। याद रखिए:
संसार(जन्म - मृत्यु) तो बस खेल है, बस खेलो,
जीत हार की बात मत करो, बस खेलो,
जो बस खेलते आया है, वो बस खेलता है।
खेल ही आनंद है, उत्सव है।
आप अपने जीवन के मालिक बनो,
निर्भरता छोड़ो, बड़े लक्ष्य की ओर ध्यान दो।
स्वयं का ज्ञान प्राप्त करना सर्वश्रेष्ठ लक्ष्य है।
स्वयं का ज्ञान होना ही मुक्ती है।
स्वयं का ज्ञान होना ही कर्म मुक्ति है।
स्वयं का ज्ञान होता ही स्वयं से मुक्ति है।