जब हम सभी को आनंद और सुख अनुभव हो सकता है तो फिर ऐसा क्यों दिखाई पड़ता है कि सुख व आनंद की जगह दुख ही दुख मिल रहा है, कारण बिल्कुल स्पष्ट है कि आप सत्य के साथ नहीं हैं। सत्य स्वीकार करना ही आनंद को प्रकट करता है, अगर आप एक असत्य जीवन जी रहे हैं तो निश्चित है, आप दुखों को आमंत्रित कर रहे हैं।
असत्य तो दूसरों को दिखाया जा सकता है, ठीक है, हंसमुख स्वभाव, ऐश्वर्य दिखा सकते हैं। परंतु अंदर तो यह आप जानते ही हैं कि आपका सत्य क्या है। क्योंकि जब भी सत्य स्वीकार किया गया है, तो चाहे वह कितना भी छोटा हो वह तुरंत ही आपके चित्त को शांत और आनंदित कर देता है। सत्य की बड़ी महिमा है; इसीलिए जब से शिक्षा (अध्यात्म या वयवहारिक) की शुरुआत की गई है तब से सबसे पहली शिक्षा सत्य का संग करना चाहिए कहा गया है, कि आप सत्य बोले, सत्य सुने और सत्य का पालन करें।
परंतु धीरे-धीरे मानव जाति का पतन इतना हो गया कि उनको अभी ऐसा जान पड़ता है कि असत्य से जो बाहर का दिखावा है, सुखी होने का, ऐश्वर्यशाली होने का वह प्रकट किया जा सकता है। तो लोग असत्य को सत्य से ज्यादा महत्व देने लगे; भूल ही गए कि सत्य ही आनंद की शर्त है और असत्य दुख की शर्त है।
आपको ध्यान रखना है मित्रों कि सत्य चाहे वह व्यवहारिक हो या आध्यात्मिक यात्रा में –हमेशा सत्य का ही संग करना उचित है क्योंकि सत्य हो सकता है कि कुछ क्षण के लिए आपको कष्ट दे पर यह कष्ट बिल्कुल उचित(अज्ञान के कारण) है जैसे कांटे से कांटे को निकालना जरूरी है तो थोड़ी पीड़ा जरूर होती है पर उसके बाद दोनों का ही फेंक देना है। आपके जीवन में आनंद का प्राकट्य तभी होगा जब आप सत्य को व्यवहारिक हो या अध्यात्मिक हो स्वीकार करना सीख लेंगे।
। प्रणाम।
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