ज्ञान केवल अज्ञान का अंत है।
अध्यात्म में अज्ञान केवल परिवर्तन से आसक्ति (बंधन) है।
अध्यात्म मे अज्ञान का अंत, आत्मबोध है।
आत्मबोध का उदय, चेतना का उदय है।
ज्ञान द्वारा अज्ञान को दूर करने वाली वृत्ति को चेतना कहते हैं।
चेतना का उपहार है– आत्मज्ञान की स्थिरता।
आप कितने होश/साक्षी में जीवन जीते हैं इसी से पता चलता है कि आप मुक्त हैं या बंधन में। बंधन में ही दुख है।
संसार(व्यक्ति, समय, स्थान) में कुछ बदलने की कोशिश है – बंधन है।
कुछ पाने, खोने को है – बंधन है।
कर्म से/में भय है– बंधन है।
हर पल इच्छा आती, जाती रहती है– बंधन है।
बहुत अच्छा लेख है।
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏
हर्ष हुआ, आपने समय दिया
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लेख है।
जवाब देंहटाएंज्ञान
अज्ञान का अंत
आत्मन का प्राकट्य जो पहले से है वो स्पष्ट
पूर्ण है
वही शून्य है (अभाव नहीं, निराकार, निर्गुण)
वही सत्य है
वही नित्य है
वहां बंधन कहाँ, हो भी तो किसको बांधे निर्गुणिये को? निराकार में क्या बांधेगा?
सदा मुक्त
गुरुदेव की कृपा
बहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंहर्ष हुआ, आपने समय दिया
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा
जवाब देंहटाएं🙏
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