कितना मुर्ख था मैं जिसे समझा सच
वो दुनिया तो जीवन का धोखा है
डर, अंधेरे, रौशनी को तडपाती है
रौशनी मिलती नहीं
गुरु की तड़प, गुरु मिला नहीं
सत्य की तड़प से गुरु मिला
गुरू तो गुड़ की तरह है
जीवन की कड़वाहट हर लेता है
शहद से जीवन को प्रकट कर देता है।
यहाँ हम मुफ्त में ठगे जा रहे हैं
जो डरा नही सकते उनसे डरे जा रहे हैं।
जब तक मिलता नहीं सुकुन तड़प जारी है
= जब मिल जाए तो फिर बाँट की बारी है।
🙏
सुंदर कविता
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