रविवार, 20 नवंबर 2022

सत्य ही ध्येय

 कितना मुर्ख था मैं जिसे समझा सच

वो दुनिया तो जीवन का धोखा है

डर, अंधेरे, रौशनी को तडपाती है

रौशनी मिलती नहीं 

गुरु की तड़प, गुरु मिला नहीं

सत्य की तड़प से गुरु मिला

गुरू तो गुड़ की तरह है

जीवन की कड़वाहट हर लेता है 

शहद से जीवन को प्रकट कर देता है।

 यहाँ हम मुफ्त में ठगे जा रहे हैं 

जो डरा नही सकते उनसे डरे जा रहे हैं।

 जब तक मिलता नहीं सुकुन तड़प जारी है 

= जब मिल जाए तो फिर बाँट की बारी है।


🙏

1 टिप्पणी:

नर्क की आदत

वृत्ति को और छोटा करते हैं - आदत से शुरू करते हैं। व्यक्ति अधिकांशत अपनी आदत का गुलाम होता है अपनी कल्पना में हम खुद को आज़ाद कहते हैं, पर क...