गुरुवार, 20 जनवरी 2022

सब कारण झूठे हैं!!??

      साधक के जीवन की शुरुवात में पहले विवेक को पाओ, विवेक का विस्तार करो, विवेक से आप देख सकते हैं कि झूठ का होना भी अगर दिख गया तो भी सत्य ही परमाणित होगा। फिर विवेक को भी विदा कर दो।

      आपकी गति/अवस्था/स्थिती के पीछे कारण क्या है ? जानने की कोई जरूरत नहीं है, केवल आपके होने कि स्थिती को हम/आप जानते हैं - बस ऐसा ही है। किसी को किसी भी कारण से समझ नहीं आता या आया हो तो भी बात वहीं है कि समझा नहीं गया है। तुम क्यों चुके - वो तुम जानो।
                                          
                                       सब कारण झूठे हैं।

           कारण के चलते जो कर्म किए जाते हैं, उनसे कैसे भी अलग नहीं जो कारण चलते नहीं किए, दोनों स्थिती में कारण का बंधन है। कर्म को करने, न करने से कुछ भी नहीं बदलता, उसको करने वाला भी तो गड़बड़ हो सकता है? और करने वाला जो है उसको बदलना कोई नहीं चाहता।

          अध्यात्म है – पूर्ण, आधारहीन और निजी आश्वासन पर पहुंचना। कल्पनाओं में खोया मन अगर अध्यात्म से जुड़ता है तो और अधिक भ्रम में पड़ सकता है। "गुरु" तो आपकी स्थिती बता सकता है- बाकी तुम जानों।

          आपकी पहले की, पुरानी गति/स्थिती के न रहने की अवस्था है "ब्रह्म" । यहां हम हर दशा के लिए एक नए शब्द का उपयोग कर सकते हैं। जैसी आपकी बिमारी वैसा ही नाम उपचार का है:
राग =वितराग 
सिमीत =असीम 
मरण= अमर  

        यहां सब अकारण है। अकारण ही मूल है। अकारण की कृपा है। सब एक है, सब सत्य है। दृष्य - दृष्टा एक है | मनन करें।

                                      ।।।। समर्पण ।।।। 

     समर्पण या तो सहज ही होता है या फिर होता ही नहीं।

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ज्ञान आनंद वार्ता


रविवार, 16 जनवरी 2022

आत्मसाक्षात्कार किसका ?

         आत्मसाक्षात्कार का अर्थ ये नहीं की आत्मा (अनुभवकर्ता) का साक्षात्कार होता है । बल्की यहाँ अर्थ उल्टा है कि है: मन और शरीर का साक्षात्कार होता है। अर्थ है–माया का साक्षात्कार करना।
यहाँ कभी –कोई आत्मा (अनुभवकर्ता) का दर्शन नहीं होता। कोई रोशनी नहीं, कोई हीरा नहीं, कोई दिव्य ज्योति नहीं।

        खुद को देखने का अर्थ है- अपनी वृत्तियों को देखना, अपने आंतरिक छल-कपट को देखना, बुराइयों को देखना | 
        कौन है, जो देखना चाहता है, अपनी वृत्तियों को? 
        कौन है जो अंदर के दानव को देखना चाहता है ? अपनी वृत्तियों को देखना ही आत्मसाक्षात्कार है। 
बहुत संभावना है कि इसमें आपको कोई बहुत बढ़िया या चमत्कारी बात नहीं मिले।

        अपनी वृत्तियों को देखना कष्टप्रद हो सकता है | पर देखने पर ही उनसे उपर उठने की संभावना पाई जा सकती है। जिसे ठीक- ठीक दिख रहा है कि वो कितना बंधन में है, कौन सा विचार आ रहा, कहां से आ रहा है, कौन उस कर्म का मालिक है- वो मुक्त है; क्योंकि जिसने देख लिया वो उस विचार से, कर्म से बच सकता है–यही मुक्ति है। यही चेतना है।

       आत्मा का कोई रूप, रंग, आकार और समय में कोई आस्तित्व नहीं है। आत्मा में/ से सब है, पर सब मे आत्मा नहीं।

        जिस क्षण में माया को माया देख लिया, ठीक उस क्षण में ये देखने वाला कौन है ? ये देखने वाला उस क्षण में स्वयं सत्य है।  झूठ –झूठ को, अंधेरा - अंधेरे को नहीं पकड़ सकता । किसी चीज को पकड़ने के लिए कुछ ऐसा चाहिए जो बिल्कुल उससे भिन्न हो। जिस आदमी ने अपने अंदर के किचड़, कबाड़, शोक, दुख को देख लिया वो उससे भिन्न हो गया। मुक्त हो गया।

        आत्मसाक्षात्कारी देखता तो है माया को, और एक होता जाता है –आत्मा से। 
क्योंकि जब आत्मा होती है आखों के पीछे तो तुम माया को पकड़ लेते हो। अगर उल्टा हुआ और आखों के सामने आत्मा, परमात्मा, प्रकाश दिखे तो फिर माया पीछे है। ये माया का खेल है।
ज्ञान आनंद
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रविवार, 2 जनवरी 2022

चेतना और शरीर

हमारे सबसे करीब हमारा शरीर है, और साधक की सबसे बड़ी चुनौती भी ये शरीर है। 
    शरीर को ही सत्य मान लिया है, ऐसे लोगों के बीच ही हम जन्म लेते हैं और फिर इसके अधीन हो जाते हैं, शरीर को सुख देने में ही लग जाते हैं।

पर क्या हम केवल शरीर है, नहीं; हम एक चेतना(चैतन्य) हैं और इस शरीर के साथ जुड़े हैं। 
        यही कारण है कि हम शरीर की गतिविधियों, इसके इंद्रिय वृत्ति को बन्द नहीं कर सकते हैं। जिसने भी इसको नकारा है –वो धोखे में है। कभी कभी ये शांत होता है(जान पड़ता है) तो ये ना समझे कि इसको जीत लिया। ये कभी भी आपको गिरा सकता है, कभी भी किसी विकार को प्रकट कर सकता है, जैसे –क्रोध, ईर्ष्या, आलस, कामना।

      वास्तव में हम चैतन्य हैं, हमे चेतना को विकसित करना है। इसके लिए ही गुरु, ज्ञान, ज्ञान मार्ग है। 
        पर बिना शरीर और चेतना को समझे कोई मार्ग पर नहीं बढ़ सकता। यहां कोई चमत्कार नहीं होने वाला है। कोई मनजीत नहीं है, कोई कर्मजीत नहीं है। केवल अज्ञान को दूर कर सकते हैं और चेतना को विकसित किया जा सकता है। यही अध्यात्म का मक़सद है, कुल परिणाम है।

*ज्ञान आनंद वार्ता टेलीग्राम सेवा में आप प्रश्न कर सकते हैं।
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नर्क की आदत

वृत्ति को और छोटा करते हैं - आदत से शुरू करते हैं। व्यक्ति अधिकांशत अपनी आदत का गुलाम होता है अपनी कल्पना में हम खुद को आज़ाद कहते हैं, पर क...