मंगलवार, 13 दिसंबर 2022

नर्क की आदत

वृत्ति को और छोटा करते हैं - आदत से शुरू करते हैं। व्यक्ति अधिकांशत अपनी आदत का गुलाम होता है अपनी कल्पना में हम खुद को आज़ाद कहते हैं, पर केवल कहने भर को | आपका असली चेहरा आपके सामने कभी भी आ सकता है। अगर आपको लगता है कि आप कम कामी, कोधी हैं, तो ये हो सकता है कि ऐसा  परिस्थिति वश हो और विपरीत परिस्थिति में, जब चारों ओर से तुम पर प्रहार होता है; आपका चेहरा कैसे हो जाता है, आप देख लो। यही आपकी मूल आदत है, वृत्ति है।

यहाँ बड़ी समस्या है, वृत्ति कोई हल्की चीज़ है, नहीं, तुम इसको हल्के में लेने की भूल कर रहो हो। और जब तुमको लगता तब है कि तुम मन की सवारी कर रहे हो तब भी ऐसा केवल तुमको लगता है। असल में तो मन ही तुम पर सवार रहता है। मन पर जीत हासिल करना बड़ा ही दुष्कर काम है। स्वयं के प्रति ईमानदारी चाहिए। ईमानदारी के प्रति भी निष्ठा रखनी चाहिए, तभी स्वयं का भान होगा। अपनी सभी इच्छाओं, वासनाओं का पता चलेगा। पता चलेगा कौन सा विचार, कौन सी क्रिया कहाँ से निकल रही है। जितना आप इसके स्रोत के निकट जाते जाएँगें उतना ये आपसे होगें दूर होते जाएँगे। ये सब खत्म नहीं होगें पर अब इनका प्रभाव उस प्रकार से आपको नहीं हिला जाएगा, जैसे पहले हिला जाता था ।

 यहीं आपकी मुक्ती का मार्ग है। यहाँ से आपका व्यर्थ का बोझ उतरने लगेगा, आप हल्के होने लगोगे। हल्के होते कि स्थिती से आपको आपके मार्ग का पता चलेगा, पता चलेगा कि किस ओर जाना है और उसी के हिसाब से अब आप अपने सभी कर्म - धर्म का विधारण करोगे।

अब आप एक व्यक्ति से आगे निकल सकने की ओर अग्रसर हैं। यही तो आपका हमेशा से लक्ष्य था - भार-मुक्त - आनंदमय जीवन !

शुक्रवार, 25 नवंबर 2022

शिष्य का इंतजार

शिष्य का इंतजार करना क्या है? क्या ये कमजोरी है? क्या ये सहनशक्ति है, आलसीपन है ?

मुक्ति स्वभाव से निकलती है। मेरा स्वभाव आनंद है या प्रेम। स्वभाव-गत आचरण ही शांति देता है। कर्म में स्वभाव-गत आचरण आना चाहिए। वरना द्वंद में फंश जाते हैं। मेरा आचरण केवल मेरी दिक्कत नहीं है, बल्कि इससे सारा संसार प्रभावित होता है। आपके द्वारा किए गए कर्म, बोले गए वचन वापस नहीं होने वाले। गलतियाँ सब से हो जाती हैं, गलतियों को मानना और उसको सुधारना आपका सबसे शक्तिशाली गुण है। ये शिष्यत्व का सबसे सुंदर गुण है।

 जिसको किसी भी क्षेत्र में उन्नती करती है उसमें इस गुण का होना और इसका सर्वधन करना जरूरी है। जीवन एक निरंतर चलने वाली क्रिया है। इसमें अनुभव आते ही रहेंगे, पर किसी एक अनुभव की तलाश या लालसा, आपको बंधन में रखेगी। एक अनुभव से कुछ सिख कर के आगे बढ़ते रहो, अपने उच्चतम अभिव्यक्ति की ओर । अपने उच्चतम स्तर तक जाने की कोशिश का मार्ग ही अध्यात्म है।


गुरुवार, 24 नवंबर 2022

खेल

 खेल है प्रकृति का, गुण दिए हैं प्रकृति ने। तुम नाहक ही अपने पर ले रहो हो । तुम तो ताश के पत्तों के समान हो, जो हो वो हो खेल में, खेल ही बताता है किस कि कितनी किमत है। इसमें खिलाड़ी का कोई खास योगदान है नहीं। 

सत्य ऐसे है जैसे पत्तों का कैस (case)। 

खेल खत्म, पत्ते वापस अपने कैस में । सत्य न तो खेल में शामिल है, न ही खेल के खत्म होने में शामिल है। सत्य है तो खेल है। पर सत्य खेल है नहीं। सत्य को जान जानें से खेल के सारे गुण जाने जाते हैं।

प्रकृति और सत्य के बीच एक बोध का पूल है। मनुष्य की बैचेनी उसका इस पूल पर एक छोर से दूसरे दोर भागने का परिणाम है। जब हम प्रकृति का अतिक्रमण करके सत्य की ओर बढ़ते हैं, सत्य के प्रेम में पक्ष कर उसके पास जाते रहते हैं। जितना सत्य के नजदीक हो उतने ही आनंद में हो । आपका लक्ष्य आनंद है, तो सत्य का बोध जरूरी है।

🙏

बुधवार, 23 नवंबर 2022

स्वभाव को देखे

दुख आपके बंधन का पता बता देता है।
आपके जीवन का सच सामने ला देता है। दुख बहुत काम कि चीज है, आज | हम आज एक ऐसे समाज में रहते हैं, जिसका दुख और सुख का पैमाना तुलनात्मक है, चीजों पर आधारित है। इसका हम सबके ऊपर बहुत प्रभाव है। ये ही समाज नए मानव मन को नियंत्रित करता है | अगर आप ईमानदारी से देखेंगे तो आपको पता चलता है कि आपके अपने विचार, इच्छाएँ, कर्म कितने आपके हैं?

आपका दुख बहुत बार केवल एक छोटी सी बात से भी खत्म हो  सकता है। आप अपने को समाज से थोड़ा अलग कर के देख लो। आपको पता चल जाता है कि क्या करने लायक, क्या सोचने लायक है। आपकी बहुत सारी दौड़ व्यर्थ जान पड़ जाएगी, तो फिर सार्थक गंतव्य की ओर चलना शुरू हो जाएगा।
 
दुख से सुख की ओर नहीं भागना है। दुख और सुख की व्यर्थ दौड़ को देखना है और अपने स्वभाव की ओर बढ़ना है। स्वभाव से जीने में आनंद है। स्वभाव ही मुक्ति है।  

कृप्या करें स्वयं पर, अपने लिए सदा ईमानदार रहे। ये ईमानदारी आपको अधिक स्पष्टता और शांती से आपके जीवन को भरता है।

मंगलवार, 22 नवंबर 2022

आपका प्रयास और मुक्ति

 मुक्ति की चाह ही मनुष्य की सबसे बड़ी चाह है। और मुक्ति की राह सबके लिए अलग है। सबकी परिस्थिती अलग - अलग होती है। सबके अलग - अलग बंधन हैं।

सबका अंतमन 'सत्य' को जानता है और नहीं भी। क्योंकि जहाँ भी बात सत्य की चल रही हो आपका मन वहाँ राजी हो जाता है। सत्य मन से परे है पर उसका अहसास मन को होता है।

 यही हमारी सबसे विकट समस्या है - कि कुछ है तो सही पर मन उसको पा नहीं सकता।

करें अब क्या ? चाहत तो है 'सत्य' की पर मिलता वो दिखाई नहीं देता। अब या तो हम सत्य है ही नहीं मान लें और जैसे जी रहे हैं, वैसे ही जीते मान रहें। जैसे जी रहें हैं वैसे तो हम जीना चाहते नहीं।

तो फिर 'सत्य' के लिए प्रयास करते रहे।

सत्य के लिए प्रयास कैसे करें, जब बो से मन बाहर की बात है? ‘असत्य’ से दूर रह कर ही सत्य के समीप रह सकते हैं। असत्य हम से दूरी, असत्य को हराने की कोशिश ही जीवन में आनंद का संचार करती है।

असत्य क्या है? ये ही जानना आपका ध्येय है। मन को मुक्ति चाहिए, आनंद चाहिए, क्योंकि मुक्ति और आनंद आपका स्वभाव है। जो भी गुण, विचार, व्यक्ति आपको मुक्ति से दूर करें वो है असत्य,  उसको हटाने पर आपको मुक्ति की समीपता का पता चलता है।

अपने लिए ईमानदार बने, अपने हर काम को जाँच लें - अपने बंधनों को जान लें, तभी आप बंधनों को काट सकते हैं। इसके लिए आपको किसी गुरु की आवश्यकता नहीं है। परंतु एक गुरु के सानिध्य में बधनों का पता जल्दी लग सकता है, जल्दी मुक्ति की संभावना होती है।


सोमवार, 21 नवंबर 2022

सत्य की ओर

 राम घर मिल जाएँ तो अच्छा है।

 राम घर न मिलें तो अच्छा है। 

तलाश राम की जारी रखें तो अच्छा है।

गुरु घर मिल जाएँ तो अच्छा है। 

गुरु घर न मिलें तो अच्छा है। 

तलाश गुरु की जारी रखें तो अच्छा है। 

आत्म-गुरु की जागृती हो तो अच्छा है।

तलाश सत्य की जारी रखें तो अच्छा है। 

पल-पल लूट रहे हो दुनिया में ये क्या अच्छा है?

सहारा ढूंढ रहे हो बूतों में ये क्या अच्छा है?

घुल जाओ राम की तलाश में बस यही अच्छा है।।

जिसमें राम का सार नहीं उसे छोड़ना अच्छा है।।

🙏

रविवार, 20 नवंबर 2022

सत्य ही ध्येय

 कितना मुर्ख था मैं जिसे समझा सच

वो दुनिया तो जीवन का धोखा है

डर, अंधेरे, रौशनी को तडपाती है

रौशनी मिलती नहीं 

गुरु की तड़प, गुरु मिला नहीं

सत्य की तड़प से गुरु मिला

गुरू तो गुड़ की तरह है

जीवन की कड़वाहट हर लेता है 

शहद से जीवन को प्रकट कर देता है।

 यहाँ हम मुफ्त में ठगे जा रहे हैं 

जो डरा नही सकते उनसे डरे जा रहे हैं।

 जब तक मिलता नहीं सुकुन तड़प जारी है 

= जब मिल जाए तो फिर बाँट की बारी है।


🙏

नर्क की आदत

वृत्ति को और छोटा करते हैं - आदत से शुरू करते हैं। व्यक्ति अधिकांशत अपनी आदत का गुलाम होता है अपनी कल्पना में हम खुद को आज़ाद कहते हैं, पर क...